इमरान खान पर कितना फर्क डालेगा अमेरिका का पाकिस्तान को मदद रोकना
आतंकवादियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने में नाकाम रहने के चलते पाकिस्तान को अमेरिका ने एक बार फिर आर्थिक मदद रद्द कर बड़ा झटका दिया है। अमेरिका ने बीते एक सितंबर को पाकिस्तान को दी जाने वाली 300 मिलियन डॉलर अर्थात 2,130 करोड़ रुपये की धनराशि को रोक दिया है। आतंकवाद पर लगाम लगाने में असफल पाकिस्तान को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इसके पहले कई बार धमकी दे चुके हैं और 255 मिलियन डॉलर सहायता राशि पर इसी साल जनवरी के शुरू में भी रोक चुके हैं।
पाक के लिए यूएस अहम
पाकिस्तान को वित्तीय सहायता प्रदान करने के मामले में अमेरिका अहम देश रहा है। लगातार अमेरिकी सहायता लेने वाला पाकिस्तान आतंक के मामले में उससे कोरी बकवास करता रहा है, लिहाजा बीते जनवरी में ट्रंप ने साफ शब्दों में कहा था कि पिछले 15 सालों से पाकिस्तान अमेरिका को बेवकूफ बनाकर 33 अरब डॉलर की सहायता प्राप्त कर चुका है और इसके बदले में सिर्फ झूठ और धोखे के अलावा कुछ नहीं मिला। पाक आतंक को पोसने वाला देश है और यहां की सरकारें सेना और आइएसआइ की छत्र-छाया में दिन काटती हैं। इमरान खान को प्रधानमंत्री के तौर पर कहीं अधिक संदेह से देखा जा रहा है क्योंकि अप्रत्यक्ष रूप से इमरान की सत्ता पाकिस्तानी सेना के हाथ में मानी जा रही है।
बड़ा सवाल यह है कि अमेरिका ने करोड़ों की मदद क्यों रोकी और अब आतंकियों को पाकिस्तान कैसे पालेगा। इसके पीछे अमेरिका का तर्क है कि पाकिस्तान आतंकी समूहों के खिलाफ कार्यवाही करने में विफल रहा और उन आतंकी समूहों के लिए सुरक्षित जगह बना हुआ है जो पड़ोसी देश अफगानिस्तान में पिछले कई साल से जंग छेड़े हुए हैं। बीते 17 सालों से अफगानिस्तान में अमन-चैन की कोशिश में अमेरिका ने करोड़ो डॉलर खर्च कर दिए और अपनी सेना को वहां लगाए रखा। ऐसे में पाक में आतंक का बने रहना हर दृष्टि से खतरा है। देखा जाए तो अफगानिस्तान से भारत के संबंध बहुत अच्छे हैं।
अफगानिस्तान में शांति का पेंच
अफगानिस्तान में शांति अमेरिका और भारत दोनों के लिए सुखद है पर पाकिस्तान में जड़ जमा चुका आतंकवादी इसके बीच में बड़ा रोड़ा है। खास यह है कि पाकिस्तान पिछले कुछ सालों से आर्थिक तंगी से जूझ रहा है बावजूद इसके आतंकियों को लेकर ठोस कार्यवाहियों से वह बचता रहा और जब अमेरिका की धमकी मिलती थी तो वह कार्यवाही करने की रस्म अदायगी में जुट जाता था। एक तरफ भारत के भीतर पाक प्रायोजित आतंकवाद का सिलसिला नहीं थम रहा है और दूसरी तरफ अमेरिका से वह कार्यवाही के नाम पर झूठ बोलता रहा। पाकिस्तान की जनता ने इमरान खान को सत्ता की चाबी दे दी है, इस चुनौती के साथ कि देश के भीतर मचे उथल-पुथल और बाहर के द्विपक्षीय रिश्ते वह ठीक करेंगे।मगर इमरान की सत्ता पर वहां की सेना का प्रतिबिंब है। जाहिर है कि यही सेना भारत और पाक के बीच दीवार भी है।
इमरान खान पर असर
अमेरिका की वित्तीय सहायता रद्द करने वाला हालिया कदम इमरान पर क्या असर डालेगा अभी कह पाना कठिन है। पाकिस्तान चीन के दम पर उड़ता रहा है। चीन से पाक को बड़ी आर्थिक सहायता मिलती रही है। आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के चीफ मसूद अजहर समेत लखवी जैसे आतंकियों को यूएनओ की सुरक्षा परिषद् में अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कराने की भारत की कोशिश को लगातार चीन बाधित करता रहा, यह इस बात का सबूत है कि पाक से उसकी निकटता हर हाल में है।
कब-कब रोकी मदद
खास यह भी है कि अमेरिका से पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य सहायता पर रोक कोई नई बात नहीं है। 1965 में पाकिस्तान के भारत के साथ तनाव शुरू होने के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य सहायता पर पहली बार रोक लगाई थी। 1979 में सीआइए ने पाकिस्तान के परमाणु संवर्धन की पुष्टि के बाद खाद्य सहायता छोड़कर सभी मदद रोक दी थी जबकि 1980 के प्रारंभ में अफगानिस्तान पर सोवियत संघ के आक्रमण के चलते एक बार फिर से पाकिस्तान को अमेरिका द्वारा दी जाने वाली सैन्य सहायता राशि में बढ़ोतरी कर दी गई। यहां अमेरिका ने कूटनीतिक संतुलन को ध्यान में रख कर कदम उठाया था।
अपने पैरों पर नहीं खड़ा पाक
पाकिस्तान अमेरिका के पैसे पर पलता रहा और लोकतंत्र को अपाहिज बनाने में लगा रहा। हालांकि पाकिस्तान का लोकतंत्र शुरू से ही अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाया और अब तो उसकी कई बैसाखी है जिसमें आतंकी संगठन और सेना शामिल है। पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार होने की आशंकाओं को देखते हुए 1990 और 1993 में अमेरिका ने मदद पर रोक लगाई थी। 1998 में भारत के पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद पाकिस्तान ने भी परमाणु परीक्षण किया, तब भी अमेरिका ने सहायता रोकी थी।
पाक के लिए मुसीबत, यूएस का उलटफेर
ट्रंप की ताजा आर्थिक चोट से पाकिस्तान के होश उड़ सकते हैं पर सोचने वाली बात यह है कि बीते कई दशकों से पाकिस्तान तमाम उलटफेर के बावजूद अमेरिका से सहायता प्राप्त करने में सफल रहा है। वैसे आतंकवाद पाकिस्तान की जड़ में है और अमेरिका की वित्तीय सहायता भी कुछ हद तक इस मामले में मददगार कही जा सकती है जबकि चीन तो इसके लिए सदैव तैयार है क्योंकि चीन पाकिस्तान के रास्ते भारत को संतुलित करने की फिराक में रहता है। चीन पाकिस्तान का अवसरवादी मित्र है जबकि भारत के लिए न वह मित्र है और न ही शत्रु।
इमरान के लिए नसीहत
ट्रंप के सख्त रुख के चलते ऐसी स्थिति भी हो सकती है कि चीन पाकिस्तान के बलिदान की दुहाई देकर कि उसकी कोशिशों को अमेरिका ने नजरअंदाज किया और वह उसके प्रति कहीं अधिक सहानुभूति और वित्तीय सहायता का रुख अख्तियार कर सकता है। फिलहाल अमेरिका की तरफ से जो एक्शन हुआ है अभी उस पर कई रिएक्शन दिख सकते हैं, पर इमरान सरकार को सावधान रहने के लिए यह झटका काफी होना चाहिए। हालांकि इसे लेकर प्रतिबिंब आने वाले दिनों में उभरेगा पर यह साफ है कि पाकिस्तान के लिए भीतर और बाहर दोनों माहौल तब सही होंगे जब वह आतंक से पाक को मुक्त कर देगा