आर्थिक बदहाली से जूझ रहे पाकिस्तान की मुश्किलें अभी और हैं बढ़ने वाली
आर्थिक बदहाली से जूझ रहे पाकिस्तान की मुश्किलें अब और बढ़ने वाली है। अमेरिका ने उसे दी जाने वाली सैन्य आर्थिक मदद रद्द कर दी है। रद्द की गई राशि उस फंड का हिस्सा है जिसकी घोषणा इसी वर्ष जनवरी में की गई थी। अमेरिका ने यह फैसला ऐसे समय में लिया है जब कुछ दिन बाद ही उसके विदेशमंत्री और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच वार्ता होनी है। दरअसल अमेरिका ने पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान को संदेश दिया है कि अगर वह भी अपने पूर्ववर्ती हुक्मरानों की तरह आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका की आंख में धूल झोंकते रहे तो आर्थिक मदद नहीं मिलने वाली है।
क्यों लिया फैसला
अमेरिका ने यह कदम इसलिए भी उठाया है कि उसके गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट में पाकिस्तान को उन देशों में शामिल किया गया है, जहां आतंकियों को सुरक्षित पनाह दी जाती है। कंट्री रिपोर्ट ऑन टेररिज्म के नाम से जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहा है। फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि अमेरिका द्वारा 30 करोड़ डॉलर की सहायता राशि रोके जाने के बाद पाकिस्तान की नई सरकार आतंकी संगठनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगी या नहीं। इस फैसले से पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बदतर होनी तय है। अब तक अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को मिलने वाली कुल 80 करोड़ डॉलर की मदद रोकी जा चुकी है।
अमेरिका ने चेताया
इतना ही नहीं, अमेरिका ने तमाम वैश्विक संस्थाओं को भी चेताया है कि पाकिस्तान को दी जाने वाली सहायता में वे कटौती करें। ऐसे में पाक को नकदी संकट में फंसना तय है क्योंकि पाकिस्तान नकदी संकट से पहले से ही जूझ रहा है और उसे चालू घाटा पाटने के लिए नौ अरब डॉलर यानी 63 हजार करोड़ रुपये की दरकार है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इतनी ताकतवर नहीं है कि अपने दम पर इस संकट से पार पा सके। पिछले एक दशक में पाकिस्तान का कर्ज 28 लाख करोड़ रुपये को पार कर चुका है। तमाम आर्थिक उपायों के बावजूद उसका व्यापार घाटा कम नहीं हो रहा। विदेशी मुद्रा भंडार कम होकर 10 अरब डॉलर से नीचे पहुंच चुका है। पाकिस्तान को अपनी सभी देनदारियां चुकाने के लिए जून, 2018 तक तकरीबन 17 अरब डॉलर की जरूरत थी, जिसे वह जुटा नहीं पाया है।
पाकिस्तान का घाटा
आज की तारीख में उसका बजटीय घाटा 1.481 लाख करोड़ के पार है। पिछले छह माह में पाकिस्तानी मुद्रा की कीमत लगभग 14.5 प्रतिशत गिरी है। आइएमएफ ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि पाकिस्तान का खजाना खत्म होने के कगार पर है और दूसरी ओर उसकी बाहरी तथा राजकोषीय वित्तीय जरूरतें बढ़ती जा रही हैं। आइएमएफ ने आशंका जाहिर की है कि पाकिस्तान के लिए पहले से लिए गए कर्ज को चुकाना मुश्किल होगा। दिसंबर, 2017 के बाद से यहां का केंद्रीय बैंक रुपये की कीमत दो बार गिरा चुका है। आयात महंगा होता जा रहा है और महंगाई बढ़ती जा रही है। सितंबर, 2017 तक पाकिस्तान के माथे पर 85 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज था और इसमें 12.3 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही है।
आईएमएफ से मदद
हालांकि पाकिस्तान आइएमएफ की मदद से अपनी वित्तीय जरूरतें पूरी कर अर्थव्यवस्था में तेजी ला सकता है, लेकिन उसे आइएमएफ द्वारा सुझाए गए कठिन सुधारवादी कदमों का पालन करना होगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान की सरकार आर्थिक अनुशासन की राह पर आगे बढ़ेगी? इसमें संदेह है। ऐसा इसलिए कि पाकिस्तान को जिस मद के लिए वैश्विक संस्थाओं की ओर से वित्तीय मदद प्रदान किया जाता है, वह उस मद पर खर्च करने के बजाए आतंकी गतिविधियों पर खर्च करता है। उसी का नतीजा है कि अमेरिका सहित कई वैश्विक वित्तीय संस्थाएं पाकिस्तान को दी जाने वाली मदद को रोक रही हैं।
जर्जर अर्थव्यवस्था
फिलहाल अमेरिका द्वारा सैन्य आर्थिक मदद रोके जाने की घोषणा से पाकिस्तान को अपनी जर्जर अर्थव्यवस्था की चूलें हिलने का भय सताने लगा है। चंद माह पहले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कर सुधार नहीं किए जाने की वजह से पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक मदद पर अंकुश लगाने की धमकी दी थी। अगर कहीं अमेरिका के साथ आइएमएफ ने भी पाकिस्तान को दी जाने वाली मदद से हाथ खींचा तो पाकिस्तान की माली हालत बिगड़नी तय है।