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सात साल बाद फिर सहमा पहाड़, चमोली में ग्लेशियर टूटने से नदियों के किनारे रहने वाले निवासियों में अफरा-तफरी

जून 2013 में आई केदारनाथ आपदा के जख्म अभी ठीक से भरे भी नहीं थे कि पहाड़ एक बार फिर सहम गया। ग्लेशियर टूटने के बाद नदियों के उफान पर आने की घटना चमोली जिले में हुई, लेकिन इसने पूरे राज्य के जनमानस को झकझोर कर रख दिया। चमोली के रैणी से लेकर हरिद्वार तक नदियों के किनारे रहे निवासियों में पूरे दिन अफरा-तफरी मची रही।

सीमांत चमोली जिले के रैणी गांव के नजदीक ऋषिगंगा में आए उफान से मची तबाही ने केदारनाथ जलप्रलय के घाव ताजा कर दिए। जरा याद कीजिए, 16 जून 2013 की रात चौराबाड़ी ग्लेशियर में बनी झील फटने से केदारनाथ से लेकर समूची केदारघाटी में किस तरह भारी तबाही हुई थी। केदारपुरी के साथ ही यात्रा मार्ग का प्रमुख पड़ाव रामबाड़ा पूरी तरह तबाह हो गया था तो मंदाकिनी, अलकनंदा समेत विभिन्न नदियों के उफान ने जान-माल को भारी नुकसान पहुंचाया था। इस त्रासदी ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था

अब सात साल बाद केदारघाटी जैसा आपदा का कहर फिर से रैणी गांव के निकट ऋषिगंगा और धौलीगंगा में नजर आया। इसका कारण भी ग्लेशियर ही बना। दो विद्युत परियोजनाएं तबाह हो गईं तो लगभग 150 व्यक्तियों के लापता होने की सूचना है। इस सीमांत क्षेत्र में पुलों, सड़कों के साथ ही अन्य परिसंपत्तियों को नुकसान पहुंचा है। इसके साथ ही आपदा का असर रैणी, तपोवन से लेकर हरिद्वार तक नजर आया। वजह ये कि ऋषिगंगा, धौलीगंगा नदियां अलकनंदा की सहायक नदियां हैं। देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी के संगम से गंगा बनती है। जाहिर है कि इन नदियों का जल स्तर बढऩे से हरिद्वार तक सांसें अटकी रहीं। शुक्र ये है कि पानी का वेग रुद्रप्रयाग तक आते-आते सामान्य हो गया। यदि यह ऋषिगंगा की तरह तेज होता तो निचले इलाकों में भारी तबाही का सबब बन सकता था।

 

 

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