जम्मू-कश्मीर में स्थानीय निकायों के चुनाव कराने की दिशा में बढ़ सकती है मोदी सरकार
नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी की ओर से घोषित बहिष्कार के बावजूद केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में पंचायत और शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव कराने की दिशा में आगे बढ़ सकती है. केंद्र सरकार का मानना है कि जमीनी स्तर के लोकतंत्र को किसी भी अन्य मुद्दे पर वरीयता मिलनी चाहिए. अधिकारियों ने बुधवार को यह जानकारी दी.
केंद्र सरकार का यह भी मानना है कि जम्मू-कश्मीर के ग्रामीण और शहरी इलाकों के विकास के लिए करीब 4,300 करोड़ रुपए जारी करना तब तक संभव नहीं होगा जब तक पंचायत एवं शहरी स्थानीय निकायों में निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं होंगे.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा,‘केंद्र सरकार का मानना है कि पंचायत एवं शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव जरूर कराए जाने चाहिए क्योंकि जमीनी स्तर के लोकतंत्र को मजबूत करना अहम है, क्योंकि यह बिजली, सड़क और पानी जैसे विकास के स्थानीय मुद्दों का ख्याल रखता है.’
जम्मू-कश्मीर की दो राजनीतिक पार्टियों – नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी – ने चुनावों के बहिष्कार का फैसला किया है. उनका कहना है कि केंद्र सरकार ने अब तक संविधान के अनुच्छेद 35-ए पर अपना रुख साफ नहीं किया है. यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को कुछ विशेष अधिकार देता है.
पंचायत चुनावों को लेकर ‘भ्रम’ पैदा कर रहीं केंद्र और राज्य सरकार
इससे पहले कांग्रेस की जम्मू-कश्मीर इकाई ने बुधवार को केंद्र तथा राज्य सरकार पर पंचायत एवं स्थानीय निकाय चुनावों को लेकर ‘भ्रम’ फैलाने का आरोप लगाया और कहा कि जब यह ‘‘ भ्रम ’’ दूर हो जाएगा उसके बाद ही वह चुनाव मैदान में उतरने के बारे में फैसला लेगी. राज्य में अगले महीने चुनाव होने हैं.
कांग्रेस की राज्य इकाई के अध्यक्ष जीए मीर ने कहा कि इस मुद्दे पर पार्टी नेतृत्व को जानकारी देने के लिए जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस समिति (जेकेपीसीसी) एक दल को नई दिल्ली भेजेगी. उन्होंने कहा कि राज्य के वरिष्ठ नेताओं के बीच भी चुनाव में उतरने के बारे में विचार-विमर्श होगा.
मीर ने कहा, ‘चुनाव कराने के बारे में बहुत भ्रम है. यह भ्रम केंद्र और राज्य सरकार, दोनों का बनाया हुआ है. उनकी तरफ इस इस बारे में कुछ भी स्पष्टता नहीं है. इस मुद्दे पर राज्य सरकार का रूख हर गुजरते घंटे के साथ बदलता लग रहा है.’
उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक से मुलाकात के वक्त पार्टी की ओर से इस मुद्दे से जुड़े सवाल उठाए गए थे और ऐसा लगता है कि सरकार इस मुद्दे पर गंभीर नहीं है, बस थाह लेना चाह रही है.