एक अख़बार ने किया खुलासा नगर निगम लखनऊ में सैकड़ो कर्मचारी फर्जी
जी हाॅ इन्हें फर्जी ही कहाॅ जाएगा। लेकिन काम ये पूरे तरीके से सरकारी कर रहे है। यही नही बकायदा राजस्व वसूली से लेकर राजस्व निर्धारण तक का काम पूरी रंगबाजी से करते है। बस असली और फर्जी में फर्क इतना है
कि ये फर्जी कर्मचारी सरकारी नौकरों को ऐसे नौकर है जिसें सरकार के असली नौकर नियम, कायदे और कानून को ताक पर रखकर प्रतिदिन औसतन पाॅच रूपये के भुगतान में रखे हुए है। ऐसे फर्जी कर्मचारियों की संख्या नगर निगम के आठों जोन में सैकड़ों होगी।
नगर निगम मुख्यालय से लेकर आठों जोनों में तैनात राजस्व निरीक्षक, अभियंत्रण सेवा, लेखा, फण्ड और आरआर विभगा में बाहरी व्यक्त्यिों से काम लिया जा रहा है। ऐसे मेें निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता है कि बाहरी व्यक्ति द्वारा निश्चित तौर आम जनता का किसी न किसी रूप में शोषण अवश्य किया जा रहा है।
ऐसा नही है कि इन फर्जी कर्मचारियों से आला अफसर अन्जान है बल्कि लम्बे अरसे से चल रहे नियम विरूद्ध कार्य से प्रशासन जानबूझकर अन्जान बना है।नगर निगम में फर्जी कर्मचारियों की बाढ़ है सरकारी और राजस्व सम्बंधी काम इनसे लिया जा रहा है।
इनका निगम की लिखापढ़ी में कोइ्र उल्लेख नही है। यह भी नही कि उक्त कर्मचारी किसी कार्यदायी संस्था के माध्यम से कार्यरत है। सरकारी नौकर के निजी नौकरों का यह खेल निगम में लम्बे अरसे से चल रहा है। ऐसा इसलिए कि पिछले दिनों कुछ व्यापारियों ने कुछ ऐसे बाहरी व्यक्तियों को पकड़ा था जो टैक्स वसूली वसूली के लिए पहुचे थे।
मामला पुलिस तक गया था लेकिन सत्तारूढ़ पार्षद के हस्तक्षेप से न तो पुलिस ने और न ही निगम प्रशासन ने कोई कार्रवाई की थी। इस सम्बंध में जब कुछ राजस्व अधिकारियों से चर्चा की गई तो नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने बताया कि हमारी मजबूरी है काम इतना अधिक है कि हमें मजबूरन बाहरी व्यक्तियों का सहारा लेना पड़ता है।
बाहरी व्यक्तियों से काम लेने वाले राजस्व निरीक्षकों के नामों की चर्चा करे तो इनकी संख्या बहुत है फिर भी कुछ चर्चित नामों में जोन एक धनवीर सिंह, जयशंकर पाण्डेय, जोन छह में अंजनी नेहरा, जोन चार में डीएम दुबे, जोन दो में सौरभ त्रिपाठी, जोन एक में भोलानाथ और सूजीत कुमार सहित लगभग हर जोन में बाहरी व्यक्तियों से काम लिया जा रहा है।
इन बाहरी व्यक्तियों द्वारा गृहकर दाताओं को बिल वितरण, कुर्की का नोटिस चस्पा और यहाॅ तक की गृहकर कम करवाने ंजैसे कार्य कराये जाने की चर्चा है। यही नही पटलों पर तैनात लिपिकों के पास भी आपको बाहरी व्यक्ति कार्य करते मिल जाएगें बकायदा उनके लिए अलग से कुर्सी लगी हुई है।
अब अगर प्रशासन के आला अफसर इनसे अन्जान बने तो बाॅत अलग है क्योकि ये बाहरी व्यक्ति नगर निगम द्वारा लगाए जाने वाले कैम्पों में भी मौजूद रहते है और कई तो बकायदा अफसरों पास पत्रावलियों की स्वीकृति तक कराने आते जाते रहते है।
यदि नगर निगम प्रशासन टीम बनाकर अलग अलग स्थानों का निरीक्षण करे तो उसे एक ही दिन में सैकड़ों फर्जी कर्मचारी सरकारी काम करते मिल जाएगें। इस सम्बंध जानकारो का कहना है कि यह गलत परम्परा है निगम प्रशासन को इस पर अंकुश लगाना चाहिए नही तो आने वाले समय में जनता का शोषण बढ़ेगा और नगर निगम राजस्व भी प्रभावित होगा।
महिला दिवस से पूर्व महिला सदन में महापौर श्रीमती संयुक्ता भाटिया के समक्ष पार्को सिर्फ मार्निग और इवनिंग पार्षद हेमा सनवाल और पार्षद रूपाली गुप्ता द्वारा सभी काम्पलेक्सों में टायलेट की अनिवार्यता पर बल दिया और इस पर महापौर का उन्हें आश्वासन भी मिला।
अब सवाल यह उठता है कि मुख्यालय एक पुरूष और महिलाओं बने टायलेट का इतना बेहाल क्यो है। जबकि निगम में लगभग एक हजार कर्मचारी कार्यरत है इनमें महिलाएं कर्मचारी भी काफी संख्या में तैनात है।
महिला टायलेट का दरवाजा तक गायब है। न शिस्टन है न ही सफाई का कोई ध्यान रखा जाता है। यही नही छत भी कमजोर है। यही हाल पुरूष शौचालय का है यहाॅ भी सफाई के प्रति जिम्मेदारी नही दिखाई पड़ती।
ठीक इसके विपरीत यहाॅ के अफसरों के शौचालयों को देख लिया जाए तो किसी फाईव स्टार होटल से कम व्यवस्था इनमें नही होगी।
जबकि मुख्यालय के प्रवेश द्वार को पार करते ही बने इन शौचालयों जिनमें प्रतिदिन हजार महिला पुरूष कर्मचारी और कम से कम पाॅच सौ शहरवासी का आना जाना है उसके प्रति लापरवाही और आला अफसरों के फाईव स्टार सुविधा कही न कही निगम प्रशासन की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह अवश्य लगाती है।
लगता है नगर निगम प्रशासन स्वच्छता रैकिंग में राजधानी को अव्वल लाने के लिए केवल दिखावा कर रहा है क्योकि उसका घर ही जगह जगह गंदगी से सराबोर है। कही कबाड़ तो कही पीक, कही पाइप लाइन पर दिखती कालिख, मुख्यालय के मुख्य द्वारा और जगह जगह उखड़ड़ा प्लास्टर नगर निगम के स्वच्छता अभियान की छज्जियाॅ उड़ा रहा है।
एक तरफ जहाॅ अफसरों के कमरों में बेहतरीन सुविधाओं और आधुनिक कारपोरेट तकनीक से सजावाट और सुविधा दी गई है वही अपने कर्मचारियों की शौचालय व्यवस्था के प्रति गैर जिम्मेदारी का आभास कराया जा रहा है।
यही नही नगर निगम के कई हिस्सों दीवारों के प्लास्टर उखड़े हुए है। दर्जनों जगह कबाड़ा लगा हुआ है। पिछले हिस्सें में जर्जर लगने वाले भवन में प्रचार प्रसार, स्टोर और की हालत और भी खराब है। वैसे एक बार अगर पूरे नगर निगम का सरसरी तौर पर दौरा कर लिया जाए तो यह कहा जा सकता है न तो कोइ आला अफसर मुख्यालय का दौरा करता है
न ही केयर टेकर विभाग नियमानुसार साप्ताहिक रूप से कार्यालयों और कक्षों की सफाई कराता है। लिपिकों के सीटों पर लगें पखों की कालिख नगर निगम की सफाई व्यवस्था की पोल खोलने के लिए काफी है। मुख्यालय के पीछे नालियाॅ हमेंशा गंदगी से साराबोर रहती है।
नगर निगम भले ही आर्थिक रूप से कुछ कमजोर हो लेकिन वेतन पेंशन मद में उसे राज्य वित्त आयोग से इतनी राशि जरूर मिल रही है कि वह समय पर नियमित कर्मचारियों के वेतन एवं सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन का भुगतान कर सकता है।
लेकिन इसके बावजूद निगम कार्मिकों को समय पर वेतन पेंशन समय पर भुगतान नही हो पा रहा है। आज कई पेंशनधारी बुर्जग कर्मचारियेां से मुलाकात होने पर उन्होंने सीधे कहा कि अब उनके पास तो आय का कोई साधन नही है
न ही शरीर इतना सक्षम है कि कुछ कर सके ऐसे में पेंशन ही उनका सहारा है और समय पर पेंशन भुगतान न होने से उनकी दवा सहित अन्य जरूरत पूरी नही होती अमूनन जिन्दगी तकलीफदेह हो जाती है। उनकी केवल महापौर और नगर आयुक्त साहेब से यही दरकार है कि नियमित कर्मचारियों का वेतन अधिक है
वे तो एक सप्ताह और पन्द्रह दिन का बजट लेकर चल सकते है लेकिन हमारी आय आधी हो चुकी है ऐसे में पेंशनर्स का ख्याल रखा जाए। ज्ञात हो कि पिछले तीन चार माह से राज्य वित्त आयोग द्वारा नगर निगम लखनऊ को हर माह वेतन पेशन, पीएफ एवं बीमा मद में चालीस करोड़ रूपये मिल रहे है।
इस राशि से लगभग 3800 नियमित कर्मचारी मद में 14 से 16 करोड़ और पेंशनर्स मद में लगभग 3500 कर्मचारी मद में चार से पाॅच करोड़ रूपये का भुगतान होता है। इसके बावजूद अब तक पेंशनर्स और नियमित कर्मचारियों को भुगतान नही हुआ। यही नही बीमा की राशि भी पिछले तीन माह से खाते में नही भेजी गई।