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बिहार में कुशवाहा वोटों को लेकर सियासत तेज, वोट बैंक को अपने साथ लाने कवायद में जुटे नागमणि

बिहार में कुशवाहा वोटों को लेकर राजनीति तेज हो गई है। इसकी शुरुआत जदयू ने उपेंद्र कुशवाहा को अपने पाले में लाकर की है और पिछड़ों की राजनीति में ‘लव-कुश’ समीकरण को मजबूती देने का प्रयास तेज कर दिया है। वहीं जाने-माने समाजवादी नेता रहे स्व.जगदेव के पुत्र एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि ने प्रदेश की राजनीति में कुशवाहा बिरादरी की अस्मिता एवं वजूद का सवाल उठाते हुए नई राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा कर दी है। असल में नागमणि कुशवाहा वोट बैंक को अपने साथ लाने कवायद में जुट गए हैं।

सियासत का केंद्र बना कुशवाहा वोट

प्रदेश की सियासत में कुशवाहा वोट बैंक केंद्र बनकर उभरा है। पिछड़ों की राजनीति में राजद का ‘माई’ (मुस्लिम-यादव) समीकरण है। फिर भी राजद की नजर कुशवाहा वोटों पर रही है। नब्बे के दशक में लालू प्रसाद ने स्व.जगदेव की प्रतिमा राजधानी पटना में स्थापित कर कुशवाहा वोट बैंक को एकजुट किया था। तब लालू प्रसाद ने स्व.जगदेव के पुत्र नागमणि को राजनीति में आगे किए थे। इस तरह लालू प्रसाद कुशवाहा वोटों की फसल को दशक भर तक काटते रहे।

उपेंद्र कुशवाहा जदयू के पाले में

इस बीच बिहार की राजनीति में समता पार्टी के जरिये नीतीश कुमार का तेजी से उदय हुआ तो उन्होंने कुशवाहा वोटबैंक में सेंध लगाई और उपेंद्र कुशवाहा को विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनाया। वे नागमणि को भी साथ लाए और उनकी पत्नी को मंत्री  बनाए। फिर नागमणि जदयू से अलग हो गए। उपेंद्र कुशवाहा भी नीतीश कुमार से छिट कर दूर चले गए और अपनी पार्टी बना कर कुशवाहा वोट को एकजुट करने में नौ साल बीता दिए, लेकिन एकबार फिर उपेंद्र कुशवाहा जदयू के पाले में जा चुके हैं। दरअसल पिछड़े वर्ग में यादव के बाद आबादी के लिहाज से दूसरा बड़ा तबका कुशवाहा वोट बैंक पर बिहार के दोनों गठबंधनों राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और  महागठबंधन की नजर है। कुशवाहा को छोड़कर बिहार में लगभग हर सामाजिक तबका किसी न किसी से गठबंधन से जुड़ा हुआ है। एक यही तबका है जिसके बारे में कोई भी दल एकमुश्त वोट को दावा नहीं कर सकता। ऐसे में दोनों गठबंधन इसे अपने साथ जोड़े की कवायद में जुट गए हैं।

वार्निंग की राजनीति में कुशवाहा वोट बैंक अहम

राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस प्रदेश में जाति की राजनीति का खासा बोलबाला रहा है। कुशवाहा वोट बैंक के सबसे बड़े नेता बनने की तमन्ना उपेंद्र कुशवाहा की रही है तो वहीं नागमणि जैसे कुशवाहा नेता भी खुद को कुशवाहा का बड़ा नेता होने का दावा करते रहे हैं। नागमणि अब कुशवाहा वोटों की पहचान बनाए रखने के लिए तेजी से सक्रिय हो गए हैं। मौजूदा राजनीतिक हालात में प्रदेश में कुशवाहा समाज के हर प्रमुख नेता और कार्यकर्ता की पूछ बढ़ गई है। सभी दल किसी न किसी बहाने इसे अपने पाले में गोलबंद करने में जुटे हैं। दो दशक पहले लव-कुश महासम्मेलन के बाद नीतीश कुमार इस वोट बैंक के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे। तब से कुशवाहा राजनीति उन्हीं के इर्द गिर्द घूमती रही।

कुशवाहा समाज पर भाजपा व राजद की नजर

भाजपा नेतृत्व भी कुशवाहा समाज पर अपनी नजर गड़ाए है। कुशवाहा समाज के बड़े नेता शकुनी चौधरी के पुत्र सम्राट चौधरी को भाजपा ने पहले एमएलसी बनाया और फिर नीतीश कैबिनेट में मंत्री बनाकर कुशवाहा समाज को बड़ा संदेश देने का काम किया है। इधर, राजद की भी इस वोट बैंक पर नजर है। पूर्व मंत्री आलोक मेहता को कुशवाहा वोट बैंक से जोड़ कर की पार्टी में प्रधान महासचिव की जिम्मेदारी दी गई है।

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